दिवाली जमकर मनाएं मगर...

दिवाली जमकर मनाएं मगर...

सुमन कुमार

आज दिवाली है और पूरा देश रौशनी के इस उत्‍सव के रंग में रंगा हुआ है। देश के अलग-अलग हिस्‍सों में इस उत्‍सव को मनाने के अपने अपने तरीके हैं मगर कुछ चीजें हर जगह एक जैसी हैं। जैसे कि दीप, मिठाइयां और पटाखे। देश के दूसरे हिस्‍सों में तो दिवाली कमोबेश पिछले सालों जैसी ही मनायी जाएगी मगर देश की राजधानी और उसके आसपास के राज्‍यों के दिल्‍ली से सटे शहरों के लिए दिवाली पिछले दो सालों से कुछ अलग हो गई है। पिछले वर्ष जहां दिल्‍ली एनसीआर में पटाखे की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित थी वहीं इस वर्ष इसकी सशर्त बिक्री हो रही है। यानी दिल्‍ली और उसके आसपास के लोग इस वर्ष पटाखे चला पाएंगे। इस आलेख में हम दिवाली मनाने के बारे में आपको नहीं बता रहे बल्कि दिवाली के कारण आपकी सेहत को होने वाले किसी भी नुकसान से बचने के तरीके बताने जा रहे हैं।

पटाखे चलाएं मगर...

पिछले कई दशकों से पटाखे दिवाली का अनिवार्य अंग बन गए हैं। ये सच है कि हमारे माता-पिता और दादा दादी के जमाने में पटाखों का ऐसा चलन नहीं था और दिवाली पूरी तरह रोशनी का ही त्‍योहार था मगर अब पटाखे हैं और बच्‍चे ही नहीं बड़े भी इसे पूरे चाव से चलाते हैं तो इससे जुड़ी सावधानियां तो बरतनी ही चाहिए इसलिए पटाखे चलाने से पहले ये ध्‍यान रखें कि पटाखों के पैकेट पर उसे चलाने की सबसे सु‍रक्षित विधि चित्र समेत समझाई जाती है। उस विधि का पालन करें। उदाहरण के लिए अनार या चकरी आदि चलाने के लिए कभी भी माचिस का सीधे इस्‍तेमाल न करें बल्कि लंबी फुलझड़ी का इस्‍तेमाल करें। इससे आपका हाथ और चेहरा पटाखे से दूर सुरक्षित रहेगा। यही बात अपने बच्‍चों को भी समझाएं क्‍योंकि कम उम्र में हाथों से पटाखों में आग लगाना साहस का काम लगता है और बच्‍चे अपने दोस्‍तों को ये साहस दिखाने के लिए उत्‍सुक रहते हैं मगर उन्‍हें अच्‍छे बुरे का ज्ञान देना माता पिता और समाज की ही जिम्‍मेदारी है।

आवाज वाले पटाखों से तो दूरी ही भली मगर यदि आप रॉकेट चला रहे हैं तो इसे चलाने के लिए हमेशा लंबी बोतल का इस्‍तेमाल करें। इसमें आग लगाने के लिए भी लंबी फुलझड़ी का ही इस्‍तेमाल करें। ये ध्‍यान रखें कि रॉकेट का सिरा आबादी वाले इलाके की ओर न हो क्‍योंकि कई बार ये नीचे की ओर उड़ते हैं और काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं।

रेत और पानी का साथ...

दिवाली पूरी तरह कृत्रिम रोशनी का त्‍योहार है और इस कृत्रिम रोशनी के लिए आग का इस्‍तेमाल हर जगह होता है। आग जबतक नियंत्रण में हो तब तक तो ठीक है मगर उसकी अपनी प्रकृत्रि है कि एक बार नियंत्रण से मुक्‍त होने के बाद वो तेजी से फैलती है। इस फैलाव को रोकने के लिए जरूरी है रेत और पानी दोनों का इंतजाम रखा जाए। आग को फैलने से रोकने के लिए रेत और जलने से बचाने के लिए पानी काम आता है। जहां भी पटाखे चल रहे हों वहां ये दोनों चीजें जरूर रखें।

मिठाई...

बाजार से खरीदने से तो परहेज ही करें। आजकल इंटरनेट मिठाई बनाने की विधियों से अटा पड़ा है। आपकी भाषा में सरल विधियों वाली कोई भी मिठाई चुनें और घर में बना डालें। आपके दिमाग में भी शांति रहेगी कि आप जो खा और खिला रहे हैं वो शुद्ध है और जेब पर भी भारी नहीं है। अगर खुद बनाने में सक्षम नहीं हैं तो बाजार से ऐसी मिठाई खरीदें जिसमें मिलावट कम से कम हो। उदाहरण के लिए बेसन की बनी मिठाइयों में किसी भी तरह की मिलावट, मिलावट खोरों को बहुत लाभ नहीं पहुंचाती है इसलिए बेसन की बनी मिठाइयों जैसे कि बूंदी के लड्डू, बेसन के लड्डू, मैसूर पाक आदि बाजार से खरीदी जा सकती हैं। इसी प्रकार मैदे की बनी मिठाइयां जैसे कि बालूशाही भी खरीदी जा सकती है। व्‍हाट्सएप आजकल सोनपापड़ी से संबंधित एक चुटकले से गुलजार है मगर ये समझ लें कि सोनपापड़ी भी आपको मिलावट के खतरे से बचाने वाली मिठाई है। खोया और मावा की मिठाइयों को तो दूर से नमस्‍ते ही भली।

प्रदूषण...

दिवाली पर इससे बच पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। मगर घर के अंदर आप खुद भी बच्‍चों को भी इससे बचा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि आप घर के अंदर कम से कम प्रदूषणकारी तत्‍वों को आने दें। सिगरेट घर में बिलकुल न पीएं, घर कें अंदर मोमबत्‍ती न जलाएं और एयर फ्रेशनर का इस्‍तेमाल न करें। खाना ऐसी जगह पकाएं जहां हवा आने जाने का रास्‍ता हो, कैरोसीन के इस्‍तेमाल वाले लैंप्‍स भी कूड़ेदान में डाल दें और उसकी जगह बिजली या बैटरी के लैंप्‍स का इस्‍तेमाल करें।

दिए...

दिवाली में मिट्टी के दिए जरूर जलाएं। इस रौशनी से दो घरों में उजाला होने के साथ-साथ हमारे पर्यावरण को भी लाभ होता है। दरअसल दिए हमारे समाज के सबसे गरीब घरों में तैयार होते हैं और उनकी कमाई का यही एकमात्र समय होता है। जाहिर है कि आप जितने अधिक दिए खरीदेंगे उन घरों में उतनी ही खुशी पहुंचेगी। दूसरी ओर दियों में आमतौर पर सरसों या अलसी का तेल जलाया जाता है और आयुर्वेद के अनुसार इन तेलों को जलाने से निकलने वाला धुआं हमारे पर्यावरण को साफ करता है। इसलिए बिजली की लड़‍ियों के साथ अपने पारंपरिक दियों का साथ भी बनाए रखिये।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।